तेरापंथ धर्मसंघ में कतिपय डॉ. संतों में एक मुनि रजनीशकुमारजी है। मुनि रजनीशकुमारजी (मूल नाम राकेशकुमार) का जन्म बायतू ग्राम (राजस्थान प्रान्त, जोधपुर संभाग) के बालड़ (ओसवाल) गोत्र में वि.सं. २०३० मार्गशीर्ष कृष्णा ७, 16 नवम्बर 1973 को हुआ।उनके पिता का नाम कानमलजी और माता का नाम जमनादेवी था। अध्ययन 1oवीं कक्षा तक किया।
राकेशकुमारजी को 16 वर्ष की उम्र में वैराग्य भावना जागृत हुई।राकेशकुमार ने 21वर्ष की अविवाहित वय में सं. २०५१ कार्तिक कृष्णा ७, 27 अक्टूबर 1994 को आचार्यश्री तुलसी द्वारा अध्यात्म साधना केन्द्र-महरौली, नई दिल्ली में दीक्षा स्वीकार की। उपस्थिति लगभग ५००० थी। संयमी बनने के बाद उनका नाम मुनि रजनीशकुमारजी रखा गया।
दीक्षित होने के बाद एम.ए. 'जैन दर्शन', में 'पीएच.डी.' 'जैन आगमों में विनय की अवधारणा' विषय पर जैन विश्व भारती संस्थान से किया।
मुनि रजनीशकुमारजी प्रायः गुरुकुलवास में ही रहे है। गुरुकुलवास में उन्हें आचार्य महाप्रज्ञजी की सेवा का एवं अध्ययन का सुअवसर प्राप्त हुआ। वर्तमान में आचार्य महाश्रमणजी की सेवा में रत है। उनके द्वारा रचित पुस्तकें इस प्रकार हैं-साध्वाचार के सूत्र, रहस्य भिक्षु के व जय प्रश्न निर्झर। महाप्राण महाप्रज्ञ पुस्तक का संकलन, गीत रचना व अनेक निबन्ध लिखे।
मुनि रजनीशकुमारजी कई तरह की तपस्या करते हैं। संवत् 2071 वैशाख पूर्णिमा तक-उपवास से १३ तक लड़ी बद्ध तप किया। ये अनाहार की तपस्या में हमारी सेवा भी करते हैं और जानकारी मिली की १४००-२००० गाथाओं का स्वाध्याय भी कर लेते हैं। संतों की गोचरी व्यवस्था ये संभाल रहे हैं।
तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम को उठाने, आगे बढ़ाने, उसको व्यवस्थित करने में इनका बहुत श्रम रहा है। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के महत्त्वपूर्ण निर्माण में एक नींव का पत्थर मुनि रजनीशकुमारजी हैं। इस प्रकार ये विविध रूपों में सेवा दे रहे हैं। निष्ठा व जागरूकता के साथ खूब अच्छी सेवा कर रहे हैं।